• 07 Jun, 2025

भारतीय विधि प्रणाली धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम — प्रास्थिति या अधिकार की घोषणा के बारे में न्यायालय का विवेकाधिकार

भारतीय विधि प्रणाली धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम — प्रास्थिति या अधिकार की घोषणा के बारे में न्यायालय का विवेकाधिकार

भारतीय विधि प्रणाली धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम — प्रास्थिति या अधिकार की घोषणा के बारे में न्यायालय का विवेकाधिकार 
 

डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954
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भारतीय विधि प्रणाली में धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम का स्त्रोत एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को अधिकार देता है कि वह किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित हक या सम्पत्ति के उच्चारण की घोषणा कर सके। यह प्रावधान विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण हो जाता है, जब किसी व्यक्ति का हक प्रतिकूल रूप से चुनौती दी जाती है या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस पर प्रश्न उठाया जाता है। धारा 34 यह सुनिश्चित करती है कि जिन व्यक्तियों के पास किसी सम्पत्ति या विधिक हक का अधिकार है, वे निश्चितता से अपने हक का संरक्षण कर सकें।
इस अधिनियम के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति अपने अधिकार के लिए दावे करता है और कोई अन्य व्यक्ति उस पर प्रतिकूलता व्यक्त करता है, तो न्यायालय का विवेकाधिकार इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। न्यायालय, अपने विवेक से, उस व्यक्ति की स्थिति की घोषणा कर सकता है जो अपने अधिकार का दावा कर रहा है और इस प्रक्रिया में उसे अनुतोष के लिए कोई अतिरिक्त मांग करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह विशेष रूप से उन मामलों में सहायक होता है जहाँ अधिकार की स्थापना आवश्यक होती है, लेकिन प्रतिकूलता की स्थिति में कोई और उपाय नहीं किया गया हो।
धारा 34 यह भी स्पष्ट करती है कि न्यायालय ऐसी कोई घोषणा नहीं करेगा यदि वादी जिसके पास अपने अधिकार का अतिरिक्त अनुतोष माँगने का विकल्प है, वह ऐसा करने से चूकता है। यह प्रावधान न्यायालयों को यह स्वायत्तता प्रदान करता है कि वे उन मामलों में विचार करें जहाँ पक्षकार सक्षम होते हुए भी अपनी स्थिति को स्पष्ट करने में असफल होते हैं। इस दृष्टिकोण से, अधिनियम न्यायालयों को यह प्रवृत्ति नहीं अपनाने की अनुमति देता है कि वे केवल बयानबाजी या संवैधानिक अधिकारों की घोषणा करें, बल्कि वे उपयुक्त और सार्थक समाधान प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
स्पष्ट है कि धारा 34 का महत्व केवल अधिकारों की रक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्पत्ति के न्यासियों के लिए भी एक मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करती है। यदि कोई सम्पत्ति का न्यासी है और वह किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध हक का प्रत्याख्यान कर रहा है जो अस्तित्व में नहीं है, तब भी न्यायालय की विवेकाधिकार का उपयोग महत्वपूर्ण हो जाता है। न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से भाग ले सकता है कि हितों की रक्षा की जाए और उस व्यक्ति के अधिकारों का सही ढंग से मूल्यांकन किया जाए।
धारा 34 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम न्यायालयों को एक विवेकाधीन अधिकार देता है, जो विधिक मामलों में संतुलन और न्याय सुनिश्चित करता है। यह न केवल व्यक्तियों के अधिकारों को सुरक्षित करता है, बल्कि सम्पत्ति की न्याय व्यवस्था को भी सुदृढ़ बनाता है। इस प्रकार, इस अधिनियम की कानून प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है, जो यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को उनके अधिकार और सम्पत्ति के प्रति उचित और निष्पक्ष न्याय मिले।

Dr. Lokesh Shukla

Dr. Lokesh Shukla, Managing Director, International Media Advertisent Program Private Limited Ph. D.(CSJMU), Ph. D. (Tech.) Dr. A.P.J. Abdul Kalam Technical University, before 2015 known as the Uttar Pradesh Technical University, WORD BANK PROCUREMENT (NIFM) Post Graduate Diploma Sales and Marketing Management