• 07 Jun, 2025

छद्म विधायन के सिद्धान्त भारतीय संविधान केन्द्र तथा राज्य विधान मण्डलों के मध्य विधायी शक्तियों का विभाजन डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 945012595

छद्म विधायन के सिद्धान्त भारतीय संविधान केन्द्र तथा राज्य विधान मण्डलों के मध्य विधायी शक्तियों का विभाजन डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 945012595

छद्म विधायन के सिद्धान्त भारतीय संविधान केन्द्र तथा राज्य विधान मण्डलों के मध्य विधायी शक्तियों का विभाजन
डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 945012595

भारत का संविधान एक संघीय ढांचा प्रस्तुत करता है, जिसमें केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर शासन के लिए विभिन्न शक्तियों का वितरण किया गया है। इस प्रणाली में, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है। इस विभाजन का उद्देश्य क्षेत्रीय विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए स्थानीय मुद्दों पर प्रभावी तरीके से निर्णय लेने की प्रक्रिया को मजबूत करना है।
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्र और राज्य की शक्तियों का उल्लेख  है। व तीन विभिन्न सूची में विभाजित  है:
1. केन्द्र की सूची:  उन विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर केवल केन्द्र सरकार कानून बना सकती है। इसमें रक्षा, विदेश मामले, परमाणु ऊर्जा, और अंतरिक्ष जैसे महत्वपूर्ण विषय आते हैं।
2. राज्य की सूची: उन विषयों को इंगित करती है, जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं। कृषि, भूमि सुधार, स्थानीय प्रशासन, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे राज्य स्तर पर प्रबंधित किए जाते हैं।
3. संविधानिक सूची: इस सूची में वे विषय शामिल हैं, जिन पर केन्द्र या राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं। इसमें शिक्षा, श्रम, और पर्यावरण जैसे विषय आते हैं।
विधायी शक्तियों का  विभाजन भारत के संघीय ढांचे को मजबूती प्रदान कर  सुनिश्चित करता है कि केन्द्र सरकार   राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर निर्णय ले ,  राज्य सरकारें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कानून बना सकें। यह प्रक्रिया समस्या समाधान के लिए  प्रख्यापित  है।
विभागीय शक्तियों का यह विभाजन राज्य सरकारों को उनकी क्षेत्रीय विशिष्टताओं को समझने और उन पर कानून बनाने की स्वतंत्रता देता है। उदाहरण के लिए, कृषि के मुद्दे विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकते हैं। महाराष्ट्र की कृषि नीतियाँ अन्य राज्यों की नीतियों से भिन्न हो सकती हैं, जोकि वहां की जलवायु, भूमि और संसाधनों पर निर्भर करती हैं।
कभी-कभी, केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के प्रयोग को लेकर विवाद होता है। ऐसे मामलों में, संविधान ने उच्चतम न्यायालय को औचित्य प्रदान किया है कि वह विवादों का समाधान कर सके। उच्चतम न्यायालय के निर्णयांकित मामले संविधान की व्याख्या करते हैं और यह स्पष्ट करते हैं कि कौन सी सरकार किस विषय पर कानून बनाने के लिए अधिकृत है।
भारतीय संविधान द्वारा केन्द्र और राज्य विधायनों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन संघीय ढांचे की आधारशिला है। यह व्यवस्था न केवल शासन को प्रभावी बनाती है, बल्कि स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी मजबूत करती है। समय-समय पर, इस विभाजन की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रशासनिक संरचना और कानूनों का निर्माण देश के विकास और नागरिकों की संतुष्टि के लिए अनुकूल हो।
भारतीय संविधान में छद्म विधायन एक महत्वपूर्ण संवैधानिक अवधारणा है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सिद्धान्त संसदीय व्यवस्था में विधायी कार्यों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता  है।
छद्म विधायन का मूल उद्देश्य सरकार द्वारा किए जाने वाले विधायी कार्यों में पारदर्शिता लाना है। इसके अंतर्गत विधायी प्रस्तावों को सार्वजनिक जांच और चर्चा के लिए खुला रखा जाता है। इससे नागरिकों को सरकारी निर्णयों पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार मिलता है।
संविधान में छद्म विधायन के कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं। जैसे विधेयकों का प्रकाशन, सार्वजनिक परामर्श, विशेषज्ञ समितियों द्वारा जांच और संसदीय समितियों में विस्तृत चर्चा। ये सभी प्रक्रियाएं विधायी निर्णयों की गुणवत्ता और वैधता को बेहतर बनाने में सहायक होती हैं।
इस सिद्धान्त के माध्यम से संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करता है। यह नागरिकों को शासन प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी का अवसर प्रदान करता है। साथ ही सरकार को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाता है।
छद्म विधायन भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में सहायक है। यह प्रक्रिया न केवल विधायी कार्यों में पारदर्शिता लाती है बल्कि नागरिक भागीदारी को भी बढ़ावा देती है।

Dr. Lokesh Shukla

Dr. Lokesh Shukla, Managing Director, International Media Advertisent Program Private Limited Ph. D.(CSJMU), Ph. D. (Tech.) Dr. A.P.J. Abdul Kalam Technical University, before 2015 known as the Uttar Pradesh Technical University, WORD BANK PROCUREMENT (NIFM) Post Graduate Diploma Sales and Marketing Management