• 07 Jun, 2025

साम्या, न्याय तथा शुद्ध अन्तकरण धर्मशास्त्र के स्त्रोत समाज को नैतिकता और सच्चाई पर अग्रसरित डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954

साम्या, न्याय तथा शुद्ध अन्तकरण धर्मशास्त्र के स्त्रोत समाज को नैतिकता और सच्चाई  पर अग्रसरित  डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954

साम्या, न्याय तथा शुद्ध अन्तकरण हिन्दू विधि 'धर्मशास्त्र' के स्त्रोत 
साम्या का अर्थ है समानता 
न्याय हर व्यक्ति को अधिकारों और दायित्वों के अनुसार उचित और निष्पक्ष व्यवहार 
शुद्ध उद्देश्य से किया गया कार्य का परिणाम सही होगा।

शुद्ध अन्तकरण की अवधारणा न्याय और साम्यता के सिद्धांतों के साथ जुड़ी  
समाज को नैतिकता और सच्चाई के मार्ग पर अग्रसरित करते है।
डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954 

हिन्दू विधि के अंतर्गत 'धर्मशास्त्र' में साम्य का अर्थ समानता है। न्याय का तात्पर्य हर व्यक्ति को उनके अधिकारों और दायित्वों के अनुसार उचित और निष्पक्ष व्यवहार से है। जब कोई कार्य शुद्ध उद्देश्य से किया जाता है, तब उसका परिणाम सही होता है। इस प्रकार, शुद्ध अन्तकरण की अवधारणा न्याय और साम्यता के सिद्धांतों से जुड़ी हुई है, जो समाज को नैतिकता और सच्चाई के मार्ग पर आगे बढ़ाने का कार्य करती है।
हिन्दू विधि, 'धर्मशास्त्र' का गहन इतिहास और परंपरा है। यह भारतीय संस्कृति और जीवनशैली के मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करती है। हिन्दू विधि के स्त्रोतों में साम्या, न्याय और शुद्ध अन्तकरण का विशेष महत्व है।
साम्या का अर्थ है समानता। हिन्दू विधि में साम्यता का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो न्याय और अधिकारों के वितरण में निहित है। यह सिद्धांत व्यक्तियों के बीच भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक आधार बनाता है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि सभी व्यक्ति ईश्वर के समक्ष समान हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
साम्यता का सिद्धांत हिन्दू विधि के विकास का महत्वपूर्ण चरण है। यह व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सामाज के हितों के संरक्षण समर्थन करता है। साम्या का सिद्धांत सीमाओं को पार करता है और समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है।
हिन्दू विवाह संबंधी विधियों में साम्यता को विशेष रूप से देखा जा सकता है। विवाह एक पवित्र बंधन है, जहां दूल्हा और दुल्हन को समान अधिकार दिया जाता है। यह सिद्धांत परिवार में भी लागू होता है, जहां पुरुष और महिला दोनों को समान सम्मान और अवसर प्रदान किए जाते हैं।
न्याय का सिद्धांत हिन्दू विधि का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। न्याय का तात्पर्य है कि हर व्यक्ति को उसके अधिकारों और दायित्वों के अनुसार उचित और निष्पक्ष व्यवहार मिले। हिन्दू धर्म में न्याय का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत 'धर्म' है, जिसका अर्थ है नैतिकता और सदाचार।
न्याय के सिद्धांत का पालन विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। हिन्दू न्याय प्रणाली में, न्याय का अर्थ केवल दंड देना नहीं होता, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी होता है कि व्यक्ति को उसके कार्यों के अनुसार उचित परिणाम प्राप्त हो। न्याय का लक्ष्य समाज में संतुलन स्थापित करना है, ताकि सभी सदस्यों को एक परिधि में रखा जा सके। न्याय की अवधारणा केवल कानूनी परिदृश्य नहीं अपितु धार्मिक और नैतिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म में 'कर्म' का सिद्धांत व्याख्यायित किया गया है, जो अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल खराब होता है। यह न्याय प्रणाली को नैतिक आधार प्रदान करता है।
शुद्ध अन्तकरण या 'शुद्ध मनोवृत्ति,' का सिद्धांत हिन्दू विधि का आवश्यक अंग है। किसी कानूनी कार्रवाई की भावना शुद्ध और निष्कलंक होनी चाहिए। हिन्दू विधि के अनुसार शुद्ध उद्देश्य से किया गया कार्य का परिणाम सही होगा।
शुद्ध अन्तकरण की अवधारणा न्याय और साम्यता के सिद्धांतों के साथ जुड़ी हुई है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी न्यायिक प्रक्रिया में सहभागी व्यक्तियों का उद्देश्य लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए हो। व्यक्ति का उद्देश्य शुद्ध है, तो वह उस प्रक्रिया को परिणामों के रूप में सकारात्मक दृष्टि से देखेगा।
शुद्ध अन्तकरण को पारिवारिक, सामाजिक और सामुदायिक जीवन में लागू करते हैं। व्यक्ति अपने कार्यों को शुद्ध मनोवृत्ति से करता है, तो समाज में एक सकारात्मक वातावरण बनता है, जो सामूहिक समृद्धि का आधार है।
हिन्दू विधि के स्त्रोतों में साम्या, न्याय और शुद्ध अन्तकरण के सिद्धांत कानूनी मानदंडों का निर्माण कर समाज में नैतिकता, धर्म और सद्भावना की भावनाओं को प्रज्वलित करते हैं। हिन्दू विधि न केवल व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा कर समाज की भलाई को भी सुनिश्चित करता है।
समाज में समानता, न्याय और शुद्ध अन्तकरण को आधार बनाते हुए कार्य किया जाता है, तो वह एक स्वस्थ और संतुलित वातावरण की स्थापना करता है। साम्या, न्याय और शुद्ध अन्तकरण हिन्दू विधि के स्त्रोतों का प्रमुख आधार समाज के सभी स्तरों पर प्रभावी हैं। हिन्दू विधि एक कानून है, एक जीवन पद्धति है, जो समाज को नैतिकता और सच्चाई के मार्ग पर अग्रसरित करती है।

Dr. Lokesh Shukla

Dr. Lokesh Shukla, Managing Director, International Media Advertisent Program Private Limited Ph. D.(CSJMU), Ph. D. (Tech.) Dr. A.P.J. Abdul Kalam Technical University, before 2015 known as the Uttar Pradesh Technical University, WORD BANK PROCUREMENT (NIFM) Post Graduate Diploma Sales and Marketing Management